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Sunday, August 21, 2011

कुछ अपना-सा

वो खुबसूरत सा चाँद,
वो चुटकी भर चाँद,
अंधियारी रात में उजियारा वो चाँद
हमें लगा कुछ तुमसा वो चाँद!

वो जाना-पहचाना सा चाँद,
वो प्यार भरा चाँद,
टिमटिमाते तारों के बीच,चमकता वो चाँद!

बादलों में छिपता,अठखेलिया करता
मन के तारों को झंकृत करता!
मीलो दूर हो कर पास जो लगता 
हमें लगा कुछ तुमसा वो चाँद!

कभी देर-सवेर निकलता 
कभी रात भर भटकता,
इतने तारों में अकेला चाँद
अब लगा हमें कुछ अपना-सा चाँद!

काली घटाएं जिसे छुपा जाती 
हवाएं संग बहा ले जाती,
दिन-दिन घटता दिन-दिन बढ़ता,
अब लगा हमें कुछ अपना-सा चाँद!

1 comment:

  1. mujhe to roj lagta hai apna sa chand ....suparb..pura apna sa chanda mama..

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